जन्म से मृत्यु पर्यंत सोलह संस्कारों को समझे आसान भाषा में। हिंदू धर्म में जन्म से लेकर मृत्यु तक कुछ रीति रिवाज होते हैं जिनका गहरा मतलब होता है। इन संस्कारों के पीछे एक संदेश छिपा होता है यह संदेश हमें इन संस्कारों की उपयोगिता बताता है। यूं तो अच्छे और बुरे संस्कार भी होते हैं परंतु जिन संस्कारों की यहां बात की जा रही है वह एक तरह से सनातन धर्म संस्कृति को दर्शाता है।
बच्चे के जन्म के साथ ही यह संस्कार प्रारंभ हो जाते हैं जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है यह संस्कार भी चलते जाते हैं। गर्भाधान से शुरू करके नामकरण संस्कारों और बच्चे को खिलाने से लेकर सिर के बाल उतारने और कान में छेद करना गुरु से शिक्षा लेना वेदों का पठन-पाठन विवाह आदि से होते हुए 16 संस्कार मृत्यु पर्यंत चलते हैं। इस पूरी यात्रा में आपको हिंदू धर्म की उपयोगिता का पता चलता है। 11 संस्कार के पीछे गहरा उद्देश्य छिपा होता है।
हम अपने दैनिक जीवन में किये जाने वाले हर एक कृत्य से यह दर्शाते हैं कि हम कैसे हैं। इस का प्रभाव हमारे बच्चों पर पड़ता है। यदि आपको संस्कारों की जानकारी होगी तो आप अपने बच्चों को सही शिक्षा दे पाएंगे।
माता पिता बच्चे के मार्गदर्शक और गुरु होते हैं। यदि इन परम्पराओं को आप मानते हैं तो धीरे धीरे अपने रीति रिवाज और परम्पराओं से अपने बच्चों को इस तरह से अवगत कराएं कि वे आपसे बोर न हों और उन्हें इन संस्कारों की बेसिक जानकारी मिलती रहे।
गुरु वैदिक का प्रयास है कि न सिर्फ सोलह संस्कार बल्कि महान लोगों की अमर कहानी को आपके संज्ञान में लाया जाएगा ताकि आप अपने भविष्य में अपने संस्कारों को अपने जीवन में जगह दे सकें।
इसलिए हमने सौलह संस्कारों का विषय चुना। इस कड़ी में आपको जो भी जानकारी दी जा रही है उसमे इस बात का ख़याल रखा गया है की छोटी उम्र में भी कोई बालक जो अभी बच्चा है इसे समझ सके।
ख़ास तौर पर आपके बच्चों के लिए लिखा गया यह कंटेंट हम उम्मीद करते हैं कि आपको पसंद आएगा।
आइये अब जानते हैं सौलह संस्कारों को आसान भाषा में।
1. गर्भाधान संस्कार
यह ऐसा संस्कार है जिसे वैज्ञानिक स्वीकृति भी मिली है शास्त्रों में योग्य, गुणवान और आदर्श संतान प्राप्त करने के लिए गर्भधारण किस प्रकार करें? इसका वर्णन किया गया है। यह संस्कार पति पत्नी के मिलन और उतम संतान प्राप्ति का है । यह संस्कार प्रतिपदा, अमावस, पूनम, अष्टमी और चतुदर्शी को नहीं करना चाहिए ।
2. पुंसवन संस्कार
यह संस्कार पुत्र प्राप्ति के लिए किया जाता है ऐसा माना जाता है कि चार माह से पूर्व गर्भ का लिंग अज्ञात होता है इसलिए उससे पहले ही इस संस्कार को किया जाता है। पुंसवन संस्कार को करने के लिए गिलोय वृक्ष के तने से कुछ बूँदे निकालकर गर्भवती के नासिका छिद्र पर मंत्रो पढ़ते हुए लगाया जाता है।
3. सीमन्तोन्नयन संस्कार
गर्भपात को रोकने, गर्भ में पल रहे शिशु और उसकी माता की दीर्घायु की कामना और प्राप्ति इस संस्कार का प्रमुख उद्देश्य है। माँ बनने वाली स्त्री को खुश रखने के लिये पति गर्भवती की मांग भरता हैं। यह संस्कार गर्भ धारण के छठे या आठवें महीने में किया जाता है। गर्भ के दौरान स्त्री को अनेक परिवर्तनों का सामना करना पड़ता है ऐसे में उसका प्रसन्न रहना आने वाली संतान के लिए भी मंगलमय होता है इसी कारण यह संस्कार किया जाता है। इसे गोदभराई भी कहते हैं।
4. जातकर्म संस्कार
इस संस्कार में पिता समाज शिशु जन्म की ख़बर देता है और उसे अनामिका अंगुली (तीसरे नंबर की) से घी और शहद चटाता है । पिता बालक की दीर्घायु बालक के लिए उसके कान में मंत्र पढ़ता है या फिर मंदिर की घंटी का स्वर सुनाता है । आयुर्वेद में शहद से पित्त और घी से कफ शांत होता है । इसके बाद ही नाल छेदन किया जाता है। घी को सोने में घिस कर पिलाने से बुद्धि बल प्राप्त होता है ।
5. नामकरण संस्कार
शिशु जन्म के दसवें या बारहवें दिन यह संस्कार किया जाता है। इस संस्कार के समय माता, जन्में बालक नहला धुला कर नवीन वस्त्रों में पिता की गोद में देती है। प्रजापति, तिथि, नक्षत्र तथा उनके देवताओं, अग्नि तथा सोम की आहुतियाँ देने के बाद पिता शिशु के दाएँ कान में उसके नाम का उच्चारण करता है। शिशु के इस संस्कार में आए सभी जन उसके उत्तम स्वास्थ्य व सुख-समृद्धि की कामना करते हैं ।
0 Comments