आपको अपनी कुंडली पढ़ने के लिए ढेर सारी किताबें पढ़ने की जरूरत नहीं है। हमारा विश्वास है कि यदि इन चार बातों को समझ लिया तो आपको कुंडली का concept समझ में आ जायेगा। आप कुंडली पढ़ना सीखें या न सीखें पर कुंडली कैसे पढ़ते हैं इस बात का मर्म समझ में आ जायेगा।
कुंडली में 12 स्थान हैं। कुंडली का हर एक स्थान किसी न किसी खास अवस्था में उन्नत हो जाता है।
कुंडली में एक चार सात और दस की बड़ी महिमा है। एक चार सात दस यानी 1 यानि पहला स्थान 2 दूसरा, 7 सातवां, 10 यानी दसवां स्थान।
एक
पहला स्थान आपका अपना स्थान है। ईश्वर की बनाई इस सृष्टि में मनुष्य समझदार और बुद्धिमान कहलाता है इसलिए पहले घर में बुद्धिकारक बुध और गुरु बलवान माने गए हैं। यहाँ यदि बुध या गुरु में से एक भी ग्रह विराजमान है तो मनुष्य अपने जीवन का निर्वाह समझदारी के साथ करता है। वह कुल में जिम्मेदार और योग्य माना जाता है।
चार
चौथे घर की बात कर लें। कुंडली के बारह घर किसी न किसी रिश्ते के लिए बने होते हैं। चौथे घर का स्थान माँ का है। जिस रिश्ते का जो स्थान है वही ग्रह उस स्थान में प्रसन्न रह सकता है।
चन्द्रमा को भी माँ का कारक ग्रह माना जाता है इसलिए चन्द्रमा चौथे घर में प्रसन्न रहता है। चौथा घर सुख सुविधाओं का है और शुक्र भी सुख सुविधा का कारक ग्रह है इसलिए शुक्र भी चौथे घर में प्रसन्न रहता है।
सात
सातवें घर की बात करें तो विवाह का स्थान माना जाता है। विवाह के लिए शुक्र कारक ग्रह है। इसलिए शुक्र को सातवां घर प्रिय है। इसी तरह से सातवां घर भागीदारी का भी माना जाता है। शनि इस स्थान में अत्यंत प्रसन्न रहता है क्योंकि शनि पश्चिम दिशा का कारक ग्रह है और पश्चिम दिशा को भी सातवें घर से देखा जाता है।
इसके अतिरिक्त व्यक्ति की जिम्मेदारियां इसी स्थान से शुरू होती हैं और जीवन की सार्थकता भी इसी स्थान से है। जीवन की सार्थकता हो शनि के न्याय के बगैर अधूरी है इसलिए यह स्थान शनि को अति प्रिय है।
दस
दसवां स्थान पिता का स्थान है। पिता के स्थान में पिता के कारक ग्रह सूर्य सबसे पहला अधिकार है। दसवें स्थान से राज्य कृपा का भी विचार करते हैं और इन सारी चीजों का प्रतिनिधित्व सूर्य करता है।
केवल यही नहीं यह कर्म स्थान भी है। कर्म, उद्योग या पुरुषार्थ के लिए मंगल प्रसिद्ध है क्योंकि मंगल रक्त का प्रतिनिधि ग्रह है। जोश जूनून मेहनत और पुरुषार्थ के लिए मंगल को जिम्मेदार माना जाता है इसीलिए मंगल दसवें घर में प्रसन्न रहता है।
एक चार सात और दस का नियम
यहाँ उल्लेखनीय है कि माता का स्थान चौथा है तो पिता के लिए चौथा स्थान शुभ नहीं है। माँ बच्चे को दूध पिला सकती है पिता भरण पोषण कर सकता है परन्तु अपनी हद में रह कर। इसीलिए चौथे घर में सूर्य को अशुभ माना जाता है।
मंगल भी यहाँ अशुभ होता है क्योंकि मंगल कर्म करने की प्रेरणा देता है जबकि चौथा घर तो विलासिता के साधनों को प्राप्त करने का स्थान है इसलिए विलासिता और मेहनत एक स्थान पर नहीं रह सकते और यदि रहेंगे तो अजीब लगेंगे।
लग्न स्थान यानी पहला स्थान आपका स्वयं का है। सातवां स्थान आपके जीवन साथी का है। शनि जो सातवें घर में प्रसन्न होता है लग्न स्थान में कभी खुश नहीं रहेगा और जातक को खुश रहने भी नहीं देगा। क्योंकि आपके जीवन में पहले आपका चरित्र निर्माण होता है फिर आप अपनी जिम्मेदारियों के प्रति सजग हो पाते हैं।
शनि लग्न में होगा तो जन्म से ही जिम्मेदारियों का बोझ आपके सर पर आ जायेगा और आपको अपने चरित्र निर्माण के लिए समय ही नहीं मिलेगा। इसी प्रकार यदि बुध गुरु में से कोई भी यदि सातवें घर पर होगा तो जीवन साथी के प्रति आपको इतना अधिक जिम्मेदार बना देगा कि आप अपने जीवन की बाकी जिम्मेदारियां भूल जायेंगे।
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