या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता। या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता। सा माम् पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा।।
विद्या की देवी सरस्वती कमल पुष्प पर विराजमान है, उन्होंने मोतियों की माला धारण की है और सफ़ेद कपड़े पहने हैं हाथों में वीणा लिए हुए विराजमान है देवी सरस्वती की पूजा ब्रह्मा, विष्णु और शंकर आदि देवता भी करते हैं। जो देवी सारी जड़ता और अज्ञानता दूर करती है विद्या देने वाली सरस्वती माँ हमारी अज्ञानता से रक्षा करें और बुद्धि का प्रकाश दें।
विद्या की देवी सरस्वती का जन्मदिवस बसंत पंचमी बसंत ऋतु के आगमन का भी प्रतीक है। यह भी माना जाता है कि इसी दिन सिख गुरु गोविंद सिंह का जन्म हुआ था। इस पर्व को ऋषि पंचमी के नाम से जाना जाता है। देवी भागवत में उल्लेख मिलता है कि माघ शुक्ल पक्ष की पंचमी को ही संगीत, काव्य, कला, शिल्प, रस, छंद, शब्द शक्ति जिह्वा को प्राप्त हुई थी।
पूजन विधि
इस दिन देश भर में शिक्षाविद् और छात्र माँ शारदे की पूजा कर उनसे और अधिक ज्ञानवान बनाने की प्रार्थना करते हैं। भारत के कुछ राज्यों में देवी सरस्वती की मूर्ति स्थापित कर उनकी पूजा की जाती है। अगले दिन मूर्ति को नदी में विसर्जित कर दिया जाता है। बसंत पंचमी पर पीले वस्त्र पहनने,पीला भोजन करें व हल्दी से सरस्वती की पूजा करके तिलक लगाने की भी मान्यता है।
बसंत पंचमी पर पीले रंग का क्या है महत्त्व ?
पीला रंग समृद्धि का सूचक है, फसलें पकने वाली हैं इसके अलावा इस पर्व के दौरान फूलों की बहार आ जाती है, खेतों में सरसों, जौ और गेहूँ की बालियाँ खिल उठती हैं और रंगबिरंगे कीट-पतंगे, तितलियाँ चारों ओर मंडराने लगते हैं ।
आस्थाएँ और मान्यताएँ
बसंत पंचमी के दिन ब्रह्माण्ड के रचयिता ब्रह्माजी ने सरस्वती की रचना की थी। पुराणों से यह ज्ञात होता है कि सृष्टि के आरंभ में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्माजी ने मनुष्य योनि की रचना की पर मनुष्य मूक था और धरती बिलकुल शांत थी। ब्रह्माजी ने जब धरती को मूक और नीरस देखा तो अपने कमंडल से जल लेकर छिड़का जिससे एक अद्भुत शक्ति के रूप में सुंदर स्त्री प्रकट हुई जिनके एक हाथ में वीणा एवं दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। यह शक्ति सरस्वती कहलाईं। उनके द्वारा वीणा का तार छेड़ते ही तीनों लोकों में कंपन हो गया और सबको शब्द और वाणी मिल गई।
बसंत के और भी हैं रंग
बसंत पंचमी के दिन भक्त गंगा तथा अन्य पवित्र नदियों में डुबकी लगाने के बाद माँ सरस्वती की पूजा अर्चना करते हैं। हरिद्वार और उत्तर प्रदेश में श्रद्धालु गंगा और संगम के तट पर पूजा करने आते हैं। पंजाब, हरियाणा, व अन्य राज्यों से श्रद्धालु हिमाचल प्रदेश के तात्पानी में स्नान करने के लिए इकठ्ठा होते हैं । देश के ग्रामीण इलाकों में सरसों के पीले खेतों झूमते तथा पीले रंग की पतंगें आसमान की शोभा बढ़ाती देखी जाती हैं यही नहीं छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में प्रसिद्ध सिख धार्मिक स्थल गुरु−का−लाहौर में भव्य मेले का आयोजन किया जाता है।
बसंत पंचमी का आगमन सफलता का आगमन
बसंत पंचमी के दिन कोई भी नया काम प्रारम्भ करना भी शुभ माना जाता है। किसी भी कार्य के लिए यह दिन मुहूर्त लेकर आता है तो फिर जिस भी किसी कार्य के लिए किसी को कोई शुभ मुहूर्त ना मिल रहा हो तो वह बसंत पंचमी के दिन वह कार्य कर सकता है।
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